मैं एक साधु के पास था ...

मैं एक साधु के पास था। वे मुझसे कह रहे थे, मैंने लाखों रुपयों को लात मार दी। मैंने दो-चार दफा उनसे सुना। फिर थोड़ा मैंने कहा, मैंने पुछा कि यह पैसों कों लात कब मारी? वे बोले, कोई बीस साल हो गए। मैंने कहा, बीस साल हो गए और यह बात भूलती नहीं है, तो लात ठीक से नहीं लगी लगता। यह बात अब याद रखने की कौन सी जरूरत है? इसका क्या प्रयोजन है, कि आप इस बात को अभी तक मन में रखे हुए हैं। कि मैंने लाखों रुपयों पर लात मार दी है? क्या यह वह पुराना अहंकार ही तो नहीं है। जो कहता था मेरे पास लाखों हैं, अब वह कह रहा है कि मैंने लाखों को लात मार दी? क्या वही अहंकार, वही मैं, जो रुपये के त्याग से नहीं तो नहीं भर गया है? और अगर भर गया है तो बीस साल व्यर्थ चले गए। उनका कोई उपयोग नहीं हुआ। मैंने कहा, यह लात पूरी लग नहीं पाई। थोड़ा और जोर से लात मारते फिर शायद कुछ होता। ज्ञानी संत सिंह जी मसकीन सेवा दल

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