जीवन के लक्ष्य को समझे बिना ...
जीवन के लक्ष्य को समझे बिना, जीवन व्यतीत करना व्यर्थ है, फ़िज़ूल है। जीवन का लक्ष्य क्या है ? क्यों जी रहे हैं ? जीना क्यों है ? गौर से विचार करें, तो किसी ने जीवन का लक्ष्य खाना-पीना ही रखा है। यह एक साधन था, लक्ष्य नही था। किसी के जीवन का लक्ष्य परिवार है, धन-संपदा है। इससे आगे मनुष्य की निगाह नही गई। वही रूक गई है। तो साहिब कहते है
मानुखु बिनु बूझे बिरथा आइआ ॥
( टोडी महला ५ )
जीवन का ये लक्ष्य नही है। जीवन का ये निशाना नही है। यह जीवन का घर नही है। जो-जो लक्ष्य बनाए है, यह तो साधन है। साधन को लक्ष्य समझ लिया है, तो कुदरती बात है अगर साधन ही लक्ष्य हो गया तो लक्ष्य तो असल में भूल जाएगा।
तो लक्ष्य भूला हुआ है। इसीलिए अवतारी पुरूष कहते है, याद करो। किसको ? लक्ष्य को। लक्ष्य क्या है ? परमात्मा। लक्ष्य क्या है ? ईश्वर। ये भूला हुआ है। करीबन – करीबन सारी कायनात को भूला हुआ है। क्या हुआ जो करोड़ो में एक आधे मनुष्य को पता हो, लक्ष्य की समझ हो, बाकीयो को नही है। जिस जिस को लक्ष्य का बोध नही है, महाराज कहते है उसका संसार में आना व्यर्थ है, फिज़ूल है। फिज़ूल जी रहा है, व्यर्थ जी रहा है।
ज्ञानी संत सिंह जी मसकीन सेवा दल
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